जन्मपत्री के बारे में जानने के लिए हमें पहले ज्योतिष शब्द के बारे में ज्ञान होना आवश्यक है ज्योतिष शब्द ज्योति और “ईश” से मिलकर बना हैं !ज्योतिष का अर्थ है प्रकाश और ईश का अर्थ है “ईश्वर” अर्थात ईश्वर के द्वारा प्रदान किया गया प्रकाश जिसमे हम भूत, भविष्य और वर्तमान के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं भारतीय ज्योतिष प्रणाली वैदिक ज्योतिष के रूप में जानी जाती है। ज्योतिष को छठा वेदांग मान गया है इसलिए इसे वेदों के नेत्र कहा जाता है वेद या वैदिक शब्द का आश्रय सम्पूर्ण एवं शाश्वत ज्ञान से हैं , जो चतुष्पाद हो अर्थात एसे ज्ञान से जो धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थो की प्राप्ति एक साथ करने में सक्षम हो वैदिक ज्ञान का मूल भारतवर्ष में ही मान गया है और यही इसकी शरुवात हुई है लेकिन वैदिक ज्ञान को किसी भी देश की सीमा विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता है यह सर्वव्यापी ज्ञान ब्रह्मांड में मनुष्य के सुख एवं कल्याण के लिए सदैव व्यवहारिक एवं प्रासंगिक है वेदों को आधुनिक विज्ञान के पूरक के रूप में माना जाता है क्योंकि जिन प्रश्नों के उत्तर आधुनिक विज्ञान मैं नहीं हैं, उन्हें वेदों का अध्ययन कर प्राप्त कर सकते हैं जिन प्राकृतिक और भौतिक घटनाओं के कारणों की जानकारी आधुनिक विज्ञान के पास नहीं है उन कारणों की विवेचना वेदों में दिए गए तरीके (ज्योतिष विद्या) को अपनाकर की जा सकती है उदाहरण के लिए जिन बीमारियों या रोगों का इलाज आधुनिक एलोपैथिक से संभव नहीं है उनका उपचार हम आयुर्वेदिक चिकित्सा या ज्योतिष विद्या के अनुसार ग्रहों की शांति पूजा पाठ, जाप, जड़ धारण करवा कर या योगासन द्वारा रोगों को उत्पन्न होने से रोके! इसलिए वेदों को आधुनिक विज्ञान का पूरक कहा जाता है वैदिक ज्योतिष कारण और प्रभाव के संबंध पर आधारित है हमारे अतीत के कार्य ही हमें वर्तमान परिणामो को देते है भगवान श्री कृष्ण द्वारा गीता में अर्जुन को दिया हुआ यह उपदेश समपूर्ण मानव जाति को कर्म प्रधान होने का सन्देश देता हैं 84 लाख योनियों में मनुष्य जन्म को सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है केवल उसे ही कर्म करने की स्वतंत्रता है

कर्मण्येवाधिकारस्ते माफलेषु कदाचन: !
माँ कर्मफल हेतुर्भुर्मा ते संडोस्त्वकर्मणि !!
गीता , अध्याय -२, ४७

अर्थात हे मनुष्य जीव तेरा कर्म करने का अधिकार है उसके फलों में कभी नहीं ! इसलिए तू कर्मों के फल का अधिकृत मत हो तथा तेरी कर्म करने में भी आसक्ति ना हो ! मनुष्य स्वविवेक से कर्म करता है पर कर्म के फल पर उसका कोई नियंत्रण नहीं है जिसे भाग्य कहा जाता है कर्म के मुख्य: दो प्रकार है एक संचित कर्म, जिसके आधार पर मनुष्य ने जन्म लिया और दूसरा अर्जित कर्म, जन्म के बाद किये हुए कार्यो को कर्म कहते है इन्ही के आधार पर मनुष्य के भाग्य का निर्धारण होता है ऊर्जा मनुष्य को कर्म करने के लिए बाध्य करती है अन्यथा मनुष्य जीवन उदासीन, निरुत्साही, निराश एवं कर्मविहिन हो जाता ! अब हम 7 आध्यात्मिक सौर ग्रहों को और मनुष्य के शरीर में संचालित करने वाले केंद्रों के 7 चक्रों के बारे में बताते हैं :-

ग्रह शरीर में स्थान चक्र का नाम
सूर्य सिरका शीर्ष सहस्त्रार चक्र
चंद्रमा भौहें के बीच में आज्ञा चक्र
मंगल गुप्तांग मणिपुर चक्र
बुद्ध गला विशुद्ध चक्र
गुरु नाभि स्वाधिष्ठण चक्र
शुक्र दिल अनाहत चक्र
शनि गुदा और मूत्रेन्द्रिय मूलाधार चक

और इन 7 आध्यात्मिक ग्रह के अलावा दो छाया ग्रह भी हैं राहु और केतु नोड या अजगर सिर आरोही या अजगर टेल अवरोही के रूप में जाना जाता है यह दिलचस्प बात है कि हमारे वेदों में सात ग्रह सात चक्र सात रंग सात समुद्र की भी जानकारी है भारतीय वैदिक ज्ञान 4 प्रमुख वेदों ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद और अर्थववेद, छः वेदांग, छः उपांग, छः ब्रह्माण्ड, छः उपवेद एवं छः आयुर्वेद में विभाजित है जिनमे ज्ञान के सभी क्षेत्रों का समावेश है जो कि मनुष्य जीवन को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं !

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